भूल जाता हूँ फ़िक्र-ए-फ़र्दा में लुत्फ़-ए-आज भूल जाता हूँ ख़स्ता-हाली में अपना मिज़ाज भूल जाता हूँ। यूँ तो तबीब मुझसे बेहतर कोई नहीं ज़माने में बस एक अपनी अना का इलाज भूल जाता हूँ। जब कभी भी नतीजे अपने हक़ में नहीं होते मैं महफ़िल में अदब का अंदाज़ भूल जाता हूँ। परिंदों सी बेबाक उड़ान कब किसीको आई है मैं एक ही मात से अपनी परवाज़ भूल जाता हूँ। एक लालच-ए-मंज़िल ही मेरी असली पहचान है कामयाबी मिलने बाद मैं आग़ाज़ भूल जाता हूँ। मैं ख़ुदग़र्ज़-ओ- मग़रूर-ओ-दग़ाबाज़ इंसान हूँ दौलत के लिए रिश्तों का लिहाज़ भूल जाता हूँ। औरों के असरार-ए-ज़ीस्त बे-पर्दा किए जाता हूँ बस खुद की ज़िन्दगी के गहरे राज़ भूल जाता हूँ। जॉनी अहमद 'क़ैस' #johnnyahmed #johnnyahmedqais #ghazal #Shayari #Nojoto