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सिमट सिमट के सिमटती गई, थी आबरू की छोटी चादर, कभी

सिमट सिमट के सिमटती गई,
थी आबरू की छोटी चादर,
कभी हाथों को मैंने मोड़ लिया,
कभी पैरों को और भी  समेट लिया,
कभी पनपते जज्बातों को मैंने रोक लिया,
कभी आंसू को उसमें पोछ लिया,
कभी अरमानों का गला घोट दिया,
क्योंकि थी आबरू की छोटी चादर,
सिमट सिमट के......

Naina ki Nazar se Naina ki Nazar se#jindgi#shayari
सिमट सिमट के सिमटती गई,
थी आबरू की छोटी चादर,
कभी हाथों को मैंने मोड़ लिया,
कभी पैरों को और भी  समेट लिया,
कभी पनपते जज्बातों को मैंने रोक लिया,
कभी आंसू को उसमें पोछ लिया,
कभी अरमानों का गला घोट दिया,
क्योंकि थी आबरू की छोटी चादर,
सिमट सिमट के......

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