ख्वाहिशों के चिरागों ने राहें दिखाई किताबों की दुनिया ने मंजिल बताई तक़दीर के तकाजों से भिड़ते गए हम गिरे ठोकर खाकर उठे फिर से चले हम मेहनत से परेशानियों में पर्चे की तैयारी करते हैं पर्चे लीक हो कर मेरी गरीबी से बेईमानी करते हैं बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla तकाजों KK क्षत्राणी