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दो जून की रोटी है बहुत कीमती होती इसकी महिमा के आग

दो जून की रोटी
है बहुत कीमती होती
इसकी महिमा के आगे
फीके हैं हीरे मोती

राजा रंक फकीर सभी
गुणगान इसी का करते
कहीं छीन न ले हमसे कोई
दिन रात सभी है डरते
  
जिसका नसीब है जैसा
मिलती है पतली मोटी

जब क्षुधा तीव्र लग जाती
बेचैन सभी हो जाते हैं
करतें हैं पार हदें सारी
कोई भी कदम उठाते हैं

इसके लाले पड़ जातें हैं
जिसकी किस्मत है खोटी

मानव करता पाप पुण्य
छल कपट अनेकों करता है
मिल जाता है दुश्मन से कभी
कभी अपनो से ही लड़ता है

कहतें हैं पेट न होता तो
ना भेंट किसी से होती
सुनील कुमार मौर्य बेखुद

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
  # दो जून की रोटी

# दो जून की रोटी #कविता

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