मैं चाहता था एक पेड़ बनाना फिर उसी की तरह एक अटल, अजेय कविता बनाना कविता बनाना आसान था, पेड़ नहीं ; पेड़, स्तनपान के लिए पृथ्वी के सम्मुख झुका होता है धूप से बचने के लिए सर पे घोसले नुमा टोपी पहनता है अपनी पत्तेधारी बाहें उठाए प्रकृति को नमन करता है तापमान गिरने पर अपनी देह पर जमी बर्फीली परते और बारिश की नुकीली धार दृढ़ता से झेलता है कविताएं मुझ जैसे मूर्खों द्वारा बनाई जाती हैं लेकिन पेड़, केवल प्रकृति ही बना सकती है । #Adarsh singh chauhan ©Adarsh Singh आदर्श चौहान new कविता made in इंडिया (pv=nrt) राधे राधे जय श्री राम ठकुराइन #peace