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"याद है वो दिन जब रहते थे, हम इस दुनिया से होकर बे

"याद है वो दिन जब रहते थे,
हम इस दुनिया से होकर बेफिक्र।
अपनी बनाई अलग ही दुनिया में,
हम रहते थे रात और दिन।"

"न पढ़ने की चिंता थी और 
न ही सबसे आगे निकलने की चाह।
बस खेलकूद और हंसी ठिठोली में, 
निकल जाता था वक्त कुछ इस तरह।"

"हां जिम्मेदारियां तब भी थी,
हमारे उन नन्हें-नन्हें कंधों पर।
हम में समझदारी भी थी,
हर परिस्थितियों संग ढलने की।"

"लेकिन अब वो पहले जैसा वक्त कहां,
जब रहता था दिल-ओ-दिमाग़ में पूरा जहां।
मगर अब मसरूफ़ हो चले हैं,
इस क़दर ज़िंदगी की कश्मकश में।
कि अब तो हम ख़ुद से भी बतला पाते कहां।"

©शिखा शर्मा
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