झूठ की होती नहीं लंबी उड़ान। क्यों करे फिर आदमी इसपे गुमान। रोज रखता है सजा कर आठ झूठ- सोचता है मूर्ख हैं सारे सुजान। सच हमेशा सुस्त चलती चाल है। हां मगर सुख से ये मालामाल है। सच कभी लज्जित नहीं करती हमें- आदमी की सच ही सच्ची ढाल है। झूठ जितना भी चलाए दांव है। झूठ के सच ही उखाड़े पांव है। सच दिखाए झूठ को जब आइना- झांकता बगलें न मिलती ठांव है। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #सच_झूठ