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।। ग़ज़ल।। हम भी ख़िदमत कर रहे हैं शायरी की। ये कोई

।। ग़ज़ल।।

हम भी ख़िदमत कर रहे हैं शायरी की।
ये कोई जागीर थोड़ी है किसी की।

कर रहा है तू अँधेरों की हिमायत,
भीख माँगेगा किसी दिन रोशनी की।

क्या नहीं कर डालते हैं दोस्त ही अब,
क्या ज़रूरत है किसी से दुश्मनी की।

रास्ता उनकी रिहाई का निकालो,
जी रहे हैं क़ैद में जो मुफ़लिसी की।

आ चुका है वक़्त फिर संजीदगी का,
हो चुकी है इन्तिहा अब दिल्लगी की।

हँस पड़े तारे गगन में, चाँद निकला,
आ भी जायें अब कमी है आप ही की।

पूछिए मत लोग क्या-क्या पी रहे हैं,
इस सदी में आड़ लेकर तिश्नगी की।

डॉ. अनुज नागेन्द्र #Dhauladhar_range
।। ग़ज़ल।।

हम भी ख़िदमत कर रहे हैं शायरी की।
ये कोई जागीर थोड़ी है किसी की।

कर रहा है तू अँधेरों की हिमायत,
भीख माँगेगा किसी दिन रोशनी की।

क्या नहीं कर डालते हैं दोस्त ही अब,
क्या ज़रूरत है किसी से दुश्मनी की।

रास्ता उनकी रिहाई का निकालो,
जी रहे हैं क़ैद में जो मुफ़लिसी की।

आ चुका है वक़्त फिर संजीदगी का,
हो चुकी है इन्तिहा अब दिल्लगी की।

हँस पड़े तारे गगन में, चाँद निकला,
आ भी जायें अब कमी है आप ही की।

पूछिए मत लोग क्या-क्या पी रहे हैं,
इस सदी में आड़ लेकर तिश्नगी की।

डॉ. अनुज नागेन्द्र #Dhauladhar_range