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Dr. Anuj Nagendra

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Dr. Anuj Nagendra

पहलू  में  वफ़ा   के  कोई    तुझसा   नज़र  आये।
फिर  चाँद  मेरे  हाथ   का  सिक्का  नज़र   आये।
खुल  जाये  भरम  तेरी  मुहब्बत  का किसी रोज़, 
हमको  भी  निकल  जाने  का रस्ता नज़र आये।
अंदाज़ा  करें   आप  ही  उस   शख़्स   के क़द  का,
दुनिया  में   जिसे   हर  कोई  छोटा   नज़र  आये।
आंखों  में   चराग़ों  की   चमक  उठती  है  तस्बीह,
इक  बाज़  की आँखों  को जो चिड़िया नज़र आये।
कहते    तो    थे   सौग़ात    उजालों    की    बँटेगी,
ये  क्या कि   हरिक  सिम्त   अँधेरा  नज़र  आये।
इक  तुम  कि  तमाशे  को  ही  सच  मान  रहे  हो,
इक  हम  जिसे  दुनिया ही  तमाशा  नज़र आये।
ये  क्या   कि  ज़बाँ  और  है   किरदार   तेरा  और, 
अच्छा  तू  अगर  है  तो   फिर  अच्छा  नज़र आये।
महबूब  के   जलवों  से   मिली   कब  हमें  फुर्सत, 
दुनिया  के  परस्तार   को   दुनिया   नज़र  आये।
                        - डॉ. अनुज नागेन्द्र

©Dr. Anuj Nagendra
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Dr. Anuj Nagendra

जब  मुआफ़िक हवा का सहारा मिले।
क्यों न कश्ती  को मेरी  किनारा मिले।
हम  गले  भी   मिलेंगे   बड़े   शौक़ से,
दिल  तो  पहले   तुम्हारा-हमारा मिले।
एक  हसरत  यही  दिल में पाले हैं हम,
उम्रभर  साथ   हमको   तुम्हारा  मिले।
जिसमें इंसानियत का सबक़ पढ़ सकूँ,
शहर   में   कोई   ऐसा   इदारा   मिले।
क्यों  न  दिल  थामकर बैठ जाये कोई,
आँसुओं    में  अगर   माहपारा   मिले।
सारी  दुनिया  महक  जायेगी एक दिन,
खुश्बुओं  को  हवा  का  इशारा  मिले।
जुर्म की बस्तियाँ ख़ाक कर दे 'अनुज'
काश   ऐसा   भी   कोई  शरारा  मिले।
डॉ. अनुज नागेन्द्र

©Dr. Anuj Nagendra
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Dr. Anuj Nagendra

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Dr. Anuj Nagendra

जो   लोग  सच्चे  हैं  उनको  झूटा  बना  रहे  हैं।
हर  आँख  वाले   को  आप  अन्धा  बना रहे हैं।

जो  कर  रहे  हैं  बुराई  ग़ैरों   में अपने  घर  की,
वो अपनी अज़मत का ख़ुद तमाशा बना रहे हैं।

सभी  के  हाथों को  काम देंगे  था उनका वादा,
सो   नस्ले-नौ   के   लिए  कटोरा   बना  रहे  हैं।

निकल  रही  हैं  बरहना  सर  बेटियाँ जो घर से,
हम  उनके   सर  के   लिये  दुपट्टा  बना  रहे  हैं।

नहायेंगे   सब   ज़रूर   एक   रोज़   रोशनी  में,
अँधेरे   ज़हनों   में   हम   झरोखा   बना  रहे हैं।

जो  लोग  बैठे  हैं  मज़हबों  की  कमान  लेकर,
वो  हमको-तुमको  निशाना अपना बना रहे हैं।

जिसे  लगाकर  हसीन  दिखने  लगेगी  दुनिया,
मुहब्बतों  का   हम   ऐसा  चश्मा   बना  रहे  हैं।

लक़ीर  होगी  न  सरहदों को  कहीं  भी जिसमें,
हम  ऐसी  दुनिया  का  एक  नक़्शा बना रहे हैं।

वो  जिस  ज़ुबाँ से  गलीज़  कहते रहे हमें कल,
उसी  ज़ुबाँ  से  अब  अपना  बेटा  बना  रहे  हैं।

नहीं  अगर है तुम्हारी  हरक़त तो  फिर बताओ,
ये  कौन हैं  जो  चमन  को  सहरा  बना  रहे  हैं।
- डॉ. अनुज नागेन्द्र

©Dr. Anuj Nagendra
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Dr. Anuj Nagendra

हौसलों   के  सामने   है   पस्त   लाचारी   हमारी।
रंग   लाई   है   यक़ीनन   आज   ख़ुद्दारी  हमारी।

मौत  अचानक आ  गयी  बोली  मेरे  हमराह चल,
और फिर चल  ही न पायी कोई हुशियारी हमारी।

बाँटते  रहना  मुहब्बत  और  सच  का  साथ  देना,
बाद   मरने   के  ही   जायेगी   ये  बीमारी  हमारी।

सारी दुनिया अपनी बस तारीफ़ सुनना चाहती है,
क्यों   किसी को   रास आये  आइनादारी  हमारी।

दूर  तो  करने  नहीं  आता  है  कोई  मुश्किलों को,
जो  भी  मिलता  है  बढ़ा  देता  है  दुश्वारी हमारी।

कल तो मैं इंसाफ की ख़ातिर अकेला ही लड़ा था,
आज  दुनिया  कर रही है  ख़ुद  तरफ़दारी हमारी।

हम  दिया लेकर खड़े  हैं अब  अँधेरों के मुक़ाबिल,
ये   लड़ाई    अब    रहेगी   उम्रभर   जारी  हमारी।
                     
             डॉ. अनुज नागेन्द्र

©Dr. Anuj Nagendra
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Dr. Anuj Nagendra

जब  तक  तुम्हारी  ख़ाम  ख़याली  न  जाएगी।
ज़ुल्मो-सितम  की  रात  ये  काली  न  जायेगी।

मर्ज़ी   हो  आपकी   तो   ज़ुबाँ  काट  लें   मगर,
अपनी  ही  बात  हमसे   तो  टाली  न  जाएगी।

दुश्मन  का सर तो काट भी सकता हूँ वक़्त पर,
दस्तार  लेकिन   उसकी   उछाली  न   जायेगी।

एहसास    होगा    कैसे   उन्हें     तेरे    दर्द   का,  
जब  तक  ज़ुबाँ  से  बात  निकाली  न जायेगी।

रहमत  पे  उसकी   रखना  हमेशा  यक़ीन  तुम,
रब   से   दुआ   करोगे  तो   ख़ाली  न  जायेगी।

हमको   रुलायेगी   ही  ये   पीढ़ी  कभी  ज़रूर,
तहज़ीब   के  जो  साँचे  में  ढाली  न   जायेगी।

महसूस  हो  रहा  है  ये  सौ  कोशिशों  के  बाद,
दिल से अब उसकी   याद निकाली न  जायेगी।
डॉ. अनुज नागेन्द्र।

©Dr. Anuj Nagendra
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Dr. Anuj Nagendra

इस  जंग  में तुझ  जैसे   लाचार  से  क्या  होगा।
बाज़ू  में  नहीं   दम  तो  तलवार  से  क्या होगा।

हक़   अपना   जतायें   तो,  आवाज़  उठायें  तो,
हम  ख़ुद ही रहे चुप  तो सरकार  से  क्या होगा।

मेहनत का, मुशक़्क़त का, है वक़्त तरक़्क़ी का, 
अब  ऐसे में  पायल  की  झंकार  से  क्या होगा।

बस्ती  में    हमारी   जब  भरमार   है   झूठों  की,
सच्चे  भी अगर  हैं  तो   दो-चार  से  क्या  होगा।

हम  सब की भलाई  है  मिलजुल  के ही रहने में,
क्या  होगा  लड़ाई  से,  तक़रार  से   क्या  होगा।

किरदार  की   कीमत  है किरदार को उमदा कर,
दौलत  से,  हवेली  से  या   कार  से  क्या  होगा।

औरों का  सहारा क्या, हिम्मत  जो नहीं ख़ुद  में
है  नाव  ही  टूटी   तो   पतवार    से  क्या  होगा।

डॉ. अनुज नागेन्द्र

©Dr. Anuj Nagendra
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Dr. Anuj Nagendra

हर    बार    हमीं     देते    हैं      पैग़ामे-मुहब्बत।
तुम  भी  तो  बढ़ाओ    कभी   इक़्दामे-मुहब्बत।

हम  ही  से  ज़माने   में   मुहब्बत  का  चलन  है,
हम     लोग    नहीं    सोचते    अंजामे-मुहब्बत।

दुनिया  की  किसी   मय  में उसे  लुत्फ़ न आया,
होंठों  से  लगा   जिसके  कभी   जामे-मुहब्बत।

हर   सुब्ह   सुहानी   है   मुहब्बत    के   नगर  में,
पुरलुत्फ़  हुआ    करती  है  हर   शामे-मुहब्बत।

हर  शख़्स  की  आँखों  से  हवस  झाँक  रही है,
दुनिया  से न   मिट   जाय  कहीं  नामे-मुहब्बत।

तुम बन के  जो आये  हो  मुहब्बत  के तरफ़दार,
क्या  देखा   नहीं  है    कभी   आलामे-मुहब्बत।

वो लोग  मुहब्बत का मज़ा  समझेंगे क्या ख़ाक़,
चूमा  ही     जिन्होंने   न   कभी   बामे-मुहब्बत।

डॉ. अनुज नागेन्द्र

©Dr. Anuj Nagendra
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Dr. Anuj Nagendra

हमने   इरादा   क्या  किया  ऊँची  उड़ान  का।
क़दमों में ख़ुद ही झुक गया सर आसमान का।

दुश्मन  भी  उससे  आके  गले  मिलने  लगे हैं,
जादू चला  कुछ  इस  तरह  मीठी ज़ुबान का।

दे  भी   तो  भला   कैसे   हमें   धूप  से  राहत,
छलनी हुआ  है  ख़ुद  ही बदन  सायबान  का।

सूरत जो  भाईचारे  की  बिगड़ी  हुई  है आज,
अंजाम  है  आपस  की फ़क़त खींचतान  का।

मिट्टी   में  इसकी   पैदा   हुए  और   पले-बढ़े,
हम  सब   पे  बड़ा  क़र्ज़  है   हिन्दोस्तान  का।

बढ़ती  है  इसी  से  तो  मेरे  इल्म  की  दौलत,
करता  हूँ   एहतराम  हर  इक   क़द्रदान  का।

चलती  है  बात  जब  भी  शहीदाने  वतन की,
आता  है    वहाँ   ज़िक्र   मेरे   खानदान   का।

©Dr. Anuj Nagendra #Travel
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Dr. Anuj Nagendra

चराग़   बन   के    कभी   दूर   तीरगी   करते।
किसी  ग़रीब  की  कुटिया  में  रोशनी  करते।

फिर इसको कौन  पिन्हाता  लिबास रेशम के,
ग़ज़ल  के  साथ  अगर हम भी रुस्तमी करते।

किसी के काम जो आते किसी का हरते दुख,
तो  लोग  क़द्र   भला  क्यों न  आपकी करते।

बिठाये  रखता  ज़माना  तुम्हें  भी पलकों पर,
जो दूर  तुम भी  किसी आँख की नमी करते।

सभी तो  प्यासे मिले  क्या  नदी समुंदर क्या,
बयान  किससे  भला  अपनी  तिश्नगी करते।

उतार    लाते   सितारे   गगन   से  धरती  पर,
जो  काम  हो न  सका हमसे  आप ही करते।

कोई   भी  शैर  सलीक़े  का    हो  नहीं  पाया,
ज़माना    बीत   गया   हमको  शाइरी  करते।

©Dr. Anuj Nagendra
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