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मोहब्बत के दरवाज़े खुले दो नज़रे आपस में मिले मानो च

मोहब्बत के दरवाज़े खुले
दो नज़रे आपस में मिले
मानो चाँद मुद्दतो बाद सितारों से मिले
कुछ इसी तरह वो दोनों आपस में मिले।।♥️

ईश्क़ का दस्तूर ही ऐसा होता हैं
न रूह की तलब, न हवस की आग होती है
जज़्बात की समझ और मोहब्बत की तलाश होती है,
दो जान,एक दिल और पूरा जहाँ होता है
कुछ इसी तरह ईश्क़ का दस्तूर होता है।।♥️

उसने पहली दफा उसका हाथ थामा
उसकी तेज़ धड़कनो ने उसका हाल जाना
उसे करीब लाकर अपनी बाहों में समायां,
नज़रे झुकी,धड़कने मिली और कुछ इसी तरह दोनों ने ईश्क़ को पहचाना।।♥️

समय बितता रहा, प्यार बढ़ता गया
ईश्क़ की लोह जलती रही, अश्क बुझता गया
शामें ढलती रही, साहिल बनता गया
साथ राते कटती रही, खुशनुमा पल बनता गया
वो सर झुकाये इबादत करती रही, वो आँखों से होठो को पढता गया।।♥️

एक शाम वो उससे मिलने गयी
वो शाम धीरे-धीरे ढलती गयी
साँसे उसकी तेजी से चलती गयी
शाम के साथ वो भी उसमे ढलती गयी।।♥️

बीच के फ़ासले कम कर,वो एक दूसरे के करीब आए,
सर्दियों के महीनो में वो होठो पे मोहब्बत की ओस लाये,
वो कमर पे हाथ रख,उसे अपने करीब खींच लाये,
वो शाम ही ऐसे थी.. मानो सुकूं के पल उन्हें खुद इतने पास ले आये।।♥️

होठो से होठो का मिलन होने लगा
जब उसकी साँसों को वो खुदमें घोलने लगा।।♥️

वो आँखे बंद कर,अपने होठो से प्यार का इज़्हार कर रही थी
वो मासूम से होठो पर प्यार की बारिश कर रही थी
उसके होठो पर वो अपनी ईश्क़ की लाली छोड़ रही थी
वो मंज़र ही कुछ ऐसा था, वो खुद को खोकर उसमे विलीन हो रही थी।।♥️

होठो से होठ हटे और वो थोड़ा सा मुस्कुराई
नज़रे झुकी,पलके उठी और वो थोड़ा शरमाई
करीब आकर गले मिली और एक यादगार शाम बनाई।।।।।♥️♥️


                                     ___साहिल

©sahil kumar #സൂര്യാസ്തമയം
मोहब्बत के दरवाज़े खुले
दो नज़रे आपस में मिले
मानो चाँद मुद्दतो बाद सितारों से मिले
कुछ इसी तरह वो दोनों आपस में मिले।।♥️

ईश्क़ का दस्तूर ही ऐसा होता हैं
न रूह की तलब, न हवस की आग होती है
जज़्बात की समझ और मोहब्बत की तलाश होती है,
दो जान,एक दिल और पूरा जहाँ होता है
कुछ इसी तरह ईश्क़ का दस्तूर होता है।।♥️

उसने पहली दफा उसका हाथ थामा
उसकी तेज़ धड़कनो ने उसका हाल जाना
उसे करीब लाकर अपनी बाहों में समायां,
नज़रे झुकी,धड़कने मिली और कुछ इसी तरह दोनों ने ईश्क़ को पहचाना।।♥️

समय बितता रहा, प्यार बढ़ता गया
ईश्क़ की लोह जलती रही, अश्क बुझता गया
शामें ढलती रही, साहिल बनता गया
साथ राते कटती रही, खुशनुमा पल बनता गया
वो सर झुकाये इबादत करती रही, वो आँखों से होठो को पढता गया।।♥️

एक शाम वो उससे मिलने गयी
वो शाम धीरे-धीरे ढलती गयी
साँसे उसकी तेजी से चलती गयी
शाम के साथ वो भी उसमे ढलती गयी।।♥️

बीच के फ़ासले कम कर,वो एक दूसरे के करीब आए,
सर्दियों के महीनो में वो होठो पे मोहब्बत की ओस लाये,
वो कमर पे हाथ रख,उसे अपने करीब खींच लाये,
वो शाम ही ऐसे थी.. मानो सुकूं के पल उन्हें खुद इतने पास ले आये।।♥️

होठो से होठो का मिलन होने लगा
जब उसकी साँसों को वो खुदमें घोलने लगा।।♥️

वो आँखे बंद कर,अपने होठो से प्यार का इज़्हार कर रही थी
वो मासूम से होठो पर प्यार की बारिश कर रही थी
उसके होठो पर वो अपनी ईश्क़ की लाली छोड़ रही थी
वो मंज़र ही कुछ ऐसा था, वो खुद को खोकर उसमे विलीन हो रही थी।।♥️

होठो से होठ हटे और वो थोड़ा सा मुस्कुराई
नज़रे झुकी,पलके उठी और वो थोड़ा शरमाई
करीब आकर गले मिली और एक यादगार शाम बनाई।।।।।♥️♥️


                                     ___साहिल

©sahil kumar #സൂര്യാസ്തമയം
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sahil kumar

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