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#मेरी_हैसियत कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , मेरी

#मेरी_हैसियत

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , 
मेरी असली  हैसियत  जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद  खपड़े की  छत देखकर ।।१।।

बोझ  लिए  फिरता  हूं दुःख ,
हमेशा दूसरों से  बच-बचाकर ।
नहीं करता  कोई मुझसे दोस्ती ,
मुझे  झोपड़ी  वाला  समझकर ।।२।।

हंसते हैं मुझ पर मेरे ही पड़ोसी ,
मुंह में राम बगल में छुरी रखकर ।
चुगली करते हैं मेरे ही रिश्तेदार ,
इस  गरीब  की  गरीबी  देखकर ।।३।।

रोता रहता हूं अक्सर भीतर से ,
हंसने वाली दोहरी नकाब पहनकर ।
ज़रा भी जाहिर नहीं होने देता दर्द ,
ज़माने की आंखो में धूल झोंककर ।।४।।

©Mayank Kumar 'Aftaab' #मेरी_हैसियत

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , 
मेरी असली  हैसियत  जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद  खपड़े की  छत देखकर ।।१।।

बोझ  लिए  फिरता  हूं दुःख ,
#मेरी_हैसियत

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , 
मेरी असली  हैसियत  जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद  खपड़े की  छत देखकर ।।१।।

बोझ  लिए  फिरता  हूं दुःख ,
हमेशा दूसरों से  बच-बचाकर ।
नहीं करता  कोई मुझसे दोस्ती ,
मुझे  झोपड़ी  वाला  समझकर ।।२।।

हंसते हैं मुझ पर मेरे ही पड़ोसी ,
मुंह में राम बगल में छुरी रखकर ।
चुगली करते हैं मेरे ही रिश्तेदार ,
इस  गरीब  की  गरीबी  देखकर ।।३।।

रोता रहता हूं अक्सर भीतर से ,
हंसने वाली दोहरी नकाब पहनकर ।
ज़रा भी जाहिर नहीं होने देता दर्द ,
ज़माने की आंखो में धूल झोंककर ।।४।।

©Mayank Kumar 'Aftaab' #मेरी_हैसियत

कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , 
मेरी असली  हैसियत  जानकर ।
मेहमान भी कभी घर नहीं आते ,
शायद  खपड़े की  छत देखकर ।।१।।

बोझ  लिए  फिरता  हूं दुःख ,

#मेरी_हैसियत कतराते हैं अपने ही लोग मुझसे , मेरी असली हैसियत जानकर । मेहमान भी कभी घर नहीं आते , शायद खपड़े की छत देखकर ।।१।। बोझ लिए फिरता हूं दुःख , #Life