सावन के झूले सजा झूला चलो कान्हा,बहारें गुनगुनाती हैं। सजी सखियां तरस खाओ,सभी तुमको बुलाती हैं। सुनो मनमोहना तुम राधिका को संग में लाना। जुगल जोड़ी झुलायें हम, बहाने छोड़ तुम आना। अभी कान्हा चले आओ,बहुत यादें सताती है । सजा झूला------ बना चंदन,सजा फूलों,बड़ा ही इत्र भी महका। करें द्विगुणित फुहारें श्रावणी शोभा सु मन चहका । करूं मैं कल्पना श्री संग मैं, राधा झुलाती है। सजा झूला---- ठिकाना तो बता कान्हा, कहां रहते सुखद राशी। कभी गोकुल कभी मथुरा कभी हो द्वारका वासी। ठिकाना दो घड़ी इस हृद बनाने, को बुलाती है। सजा झूला---- तुम्हे राधा लगे प्यारी ,लगे मीरा बड़ी न्यारी। बिगाड़ा क्या भला हमने,करें किस तरह तैयारी। बसाऊं किस तरह हृद में यही बातें सताती है सजा झूला----' सजे झूला जु सावन रीति यह बरसों पुरानी है। यही तो प्रीति की नीती, यही तुमको निभानी है। नयन गंगा बहे जमुना ,हमें यादें रुलाती है। सजा झंला------ वीणा खंडेलवाल तुमसर ©veena khandelwal सावन की तीज की बधाई