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सड़क पे पड़ा है वो भिखारी, मांगता है वो कुछ अन्न।


सड़क पे पड़ा है वो भिखारी,
मांगता है वो कुछ अन्न।
पेट भरने की बस चाह है उसको,
है समाज से बहिष्कार उसका।।
है बना वो कंकाल,
हड्डियों के ढांचे में है वो बेहाल।
है भूख जब उसको सताती,
मांगने निकल पड़ता है वो भिखारी।।
होगी उम्र उसकी न आधी,
कुछ विपत्ति पडी होगी उस पर भारी।
दाने-दाने को वो है मोहताज,
अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं से है वो अंजान।।
है बना वो कंकाल घूमता है सड़कों पर,
बना के आशियां वो सड़कों का।
हर पल अन्न की चाह में,
सड़क पे मर रहा है भिखारी।।
                  
           अजेय
 #भिखारी#nojoto#nojotowriters#kavishala#hindinama#poetrylover#ajeyawriting#poem

सड़क पे पड़ा है वो भिखारी,
मांगता है वो कुछ अन्न।
पेट भरने की बस चाह है उसको,
है समाज से बहिष्कार उसका।।
है बना वो कंकाल,
हड्डियों के ढांचे में है वो बेहाल।
है भूख जब उसको सताती,
मांगने निकल पड़ता है वो भिखारी।।
होगी उम्र उसकी न आधी,
कुछ विपत्ति पडी होगी उस पर भारी।
दाने-दाने को वो है मोहताज,
अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं से है वो अंजान।।
है बना वो कंकाल घूमता है सड़कों पर,
बना के आशियां वो सड़कों का।
हर पल अन्न की चाह में,
सड़क पे मर रहा है भिखारी।।
                  
           अजेय
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