कहीं कोई मिथ्या नहीं है , छल नहीं है, छद्म नहीं है, बस जो स्पष्ट दिख रहा था, उसका रुख पलट दिया है । सलीके से,धुली हुई,एक बेदाग चादर, फैला दी है, सफ़ेद सिलवटों में, थोड़ा सच सिमट-सा गया है। मन-मस्तिष्क का संपोषित सच, अप्रकट,अनुद्घाटित सच, मन की छिपी भावनाओं का सच, रोज़ रोज़ की घटनाओं का सच । सोयी हुई संवेदनाओ का सच, उद्वेलित आकांक्षाओं का सच ; छिप कर अंदर मधु घोलता है, मन मधुकर होकर डोलता है। कहीं कोई मिथ्या नहीं है , छल नहीं है, छद्म नहीं है, बस जो स्पष्ट दिख रहा था, उसका रुख पलट दिया है । सलीके से,धुली हुई,एक बेदाग चादर, फैला दी है, सफ़ेद सिलवटों में, थोड़ा सच सिमट-सा गया है।