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कहीं कोई मिथ्या नहीं है , छल नहीं है, छद्म नहीं है

कहीं कोई मिथ्या नहीं है ,
छल नहीं है, छद्म नहीं है,
बस जो स्पष्ट दिख रहा था,
उसका रुख पलट दिया है ।
                                सलीके से,धुली हुई,एक
                                बेदाग चादर, फैला दी है,
                                सफ़ेद सिलवटों में, थोड़ा
                                सच सिमट-सा गया है।              
मन-मस्तिष्क का संपोषित सच,
अप्रकट,अनुद्घाटित  सच,
मन की छिपी भावनाओं का सच,
रोज़ रोज़ की घटनाओं का सच ।
                                 सोयी हुई संवेदनाओ का सच,
                                 उद्वेलित आकांक्षाओं का सच ;
                                 छिप कर अंदर मधु घोलता है,
                                 मन मधुकर होकर डोलता है। कहीं कोई मिथ्या नहीं है ,
छल नहीं है, छद्म नहीं है,
बस जो स्पष्ट दिख रहा था,
उसका रुख पलट दिया है ।
सलीके से,धुली हुई,एक
बेदाग चादर, फैला दी है,
सफ़ेद सिलवटों में, थोड़ा
सच सिमट-सा गया है।
कहीं कोई मिथ्या नहीं है ,
छल नहीं है, छद्म नहीं है,
बस जो स्पष्ट दिख रहा था,
उसका रुख पलट दिया है ।
                                सलीके से,धुली हुई,एक
                                बेदाग चादर, फैला दी है,
                                सफ़ेद सिलवटों में, थोड़ा
                                सच सिमट-सा गया है।              
मन-मस्तिष्क का संपोषित सच,
अप्रकट,अनुद्घाटित  सच,
मन की छिपी भावनाओं का सच,
रोज़ रोज़ की घटनाओं का सच ।
                                 सोयी हुई संवेदनाओ का सच,
                                 उद्वेलित आकांक्षाओं का सच ;
                                 छिप कर अंदर मधु घोलता है,
                                 मन मधुकर होकर डोलता है। कहीं कोई मिथ्या नहीं है ,
छल नहीं है, छद्म नहीं है,
बस जो स्पष्ट दिख रहा था,
उसका रुख पलट दिया है ।
सलीके से,धुली हुई,एक
बेदाग चादर, फैला दी है,
सफ़ेद सिलवटों में, थोड़ा
सच सिमट-सा गया है।