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ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले मैं अगर थक गया क

ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले 
मैं अगर थक गया क़ाफ़िला तो चले 

चाँद सूरज बुज़ुर्गों के नक़्श-ए-क़दम 
ख़ैर बुझने दो उन को हवा तो चले

 (कैफ़ी आज़मी)

©साहित्य संजीवनी
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