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मुफ़्लिसी{गरीबी} शीश महल की खिड़की से कभी कभी मे

  मुफ़्लिसी{गरीबी}

शीश महल की खिड़की से कभी कभी 
मेरे मुफ़्लिसी के चाँद का दीदार हो जाता है
मुफ़्लिसी की ठोकरे दाग बन,आज भी हैं उस चाँद में 
अमीरी की इस चांदनी से उसे छिपा रखा हूँ
मुफ़्लिसी वाला दिल बचा रखा हूँ
बाकी ज़माने का रंग चढ़ा रखा हूँ


 #muflisi
  मुफ़्लिसी{गरीबी}

शीश महल की खिड़की से कभी कभी 
मेरे मुफ़्लिसी के चाँद का दीदार हो जाता है
मुफ़्लिसी की ठोकरे दाग बन,आज भी हैं उस चाँद में 
अमीरी की इस चांदनी से उसे छिपा रखा हूँ
मुफ़्लिसी वाला दिल बचा रखा हूँ
बाकी ज़माने का रंग चढ़ा रखा हूँ


 #muflisi