हम आधे नंगे हो गए थे उसका इंतजार बाकी था चेहरा तक नहीं दिखाया उसका दीदार बाकी था उसकी नजरें नहीं उठ पाई यह वक्त कैसा राजी था मुझे जाने की बड़ी जल्दी मेरा तो पेशा काजी था आंखें झुकी आवाज़ धीमी बहुत कुछ बाकी था मैं कह रहा था डरो मत तुम्हारे सामने साथी था कैसी ये लगी लगन हवा का झोंका और बाकी था टूट कर चाहा था जिसको वो जिस्मों में ही राजी था | हम आधे नंगे हो गए थे उसका इंतजार बाकी था चेहरा तक नहीं दिखाया उसका दीदार बाकी था उसकी नजरें नहीं उठ पाई यह वक्त कैसा राजी था