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कुछ भी नहीं रुकता खुशियों की कोई औकात नहीं जब, गम

कुछ भी नहीं रुकता

खुशियों की कोई औकात नहीं जब,
गम का कितना रोना रोओगे!
जो आसमां में उड़ते हैं,
वो भी मिट्टी में मिल जाते हैं।।

रोते - रोते आते सभी,
रोते -रोते ही जाते हैं!
कितना जलते हो सभी से,
जब एक दिन ख़ाक - ए - सुपुर्द ही हो जाना है।।
मन को साफ़ नहीं करते,
चेहरे पे धूल ना जमे,
इसलिए नकाव लगा अपने चेहरे पे,
दूसरों की ऐब पर गौर फरमाते हैं।।
बड़े तो बहुत हुए आप,
सुकून की छांव कहां किसी को दे पाते हो!
खुशियों की कोई औकात नहीं जब,
गम का कितना रोना रोओगे।।
क्या रुका है इस जहां में,
जो अपने वक्त पे इतना इतराते हो!
बेनामी में कोई नाम नहीं,
अपनी शोहरत का क्यों इतना हल्ला मचाते हो।।
अपनी अमीरी का शान दिखाते,
कितने भूखे को रोटी दे पाते हो!
क्या रुका है इस जहां में,
जो अपने वक्त पे इतना इतराते हो।।

©purvarth #कुछ भी नहीं रुकता
कुछ भी नहीं रुकता

खुशियों की कोई औकात नहीं जब,
गम का कितना रोना रोओगे!
जो आसमां में उड़ते हैं,
वो भी मिट्टी में मिल जाते हैं।।

रोते - रोते आते सभी,
रोते -रोते ही जाते हैं!
कितना जलते हो सभी से,
जब एक दिन ख़ाक - ए - सुपुर्द ही हो जाना है।।
मन को साफ़ नहीं करते,
चेहरे पे धूल ना जमे,
इसलिए नकाव लगा अपने चेहरे पे,
दूसरों की ऐब पर गौर फरमाते हैं।।
बड़े तो बहुत हुए आप,
सुकून की छांव कहां किसी को दे पाते हो!
खुशियों की कोई औकात नहीं जब,
गम का कितना रोना रोओगे।।
क्या रुका है इस जहां में,
जो अपने वक्त पे इतना इतराते हो!
बेनामी में कोई नाम नहीं,
अपनी शोहरत का क्यों इतना हल्ला मचाते हो।।
अपनी अमीरी का शान दिखाते,
कितने भूखे को रोटी दे पाते हो!
क्या रुका है इस जहां में,
जो अपने वक्त पे इतना इतराते हो।।

©purvarth #कुछ भी नहीं रुकता

#कुछ भी नहीं रुकता #Poetry