हर बार तेरे हुस्न का यूँ जोर नहीं चलेगा चलेगा जरूर दांव कमजोर नहीं चलेगा, अंदर रखते हैं हम जमीर जिंदा अपना होठों की लाली में छुपा चोर नहीं चलेगा! हर बार तेरे हुस्न का यूँ जोर नहीं चलेगा चलेगा जरूर दांव कमजोर नहीं चलेगा, अंदर रखते हैं हम जमीर जिंदा अपना होठों की लाली में छुपा चोर नहीं चलेगा! सुशील ग़ाफ़िल