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इस रूह की तड़प में कैसे मिटाऊ, कि जिस्म की बंदिशों

इस रूह की तड़प में कैसे मिटाऊ,
कि जिस्म की बंदिशों के ताले लगे है,

जिस्म भी छल्ली है रूह की तड़प से,
कि इस रूह की तड़प में कैसे मिटाऊ,

अंतरमन की पीड़ा को में कैसे सुलझाऊ,
कि इन बंदिशों से में खुदको कैसे छुड़ाऊ,

कि तभी मन ने कहा रूह से,
कि ना तड़प, कि ना छल्ली कर इस जिस्म को,

कि तेरी रौशनी से रोशन महताब हूँ में,
कि तेरी आज़ादी का फरमान हूँ में,

जो कर ले तू संकल्प आज़ादी का,
तो बंज़र ज़मी में खिला गुलाब हूँ में....

©purvarth #जिस्म
#रूह 
#मन
इस रूह की तड़प में कैसे मिटाऊ,
कि जिस्म की बंदिशों के ताले लगे है,

जिस्म भी छल्ली है रूह की तड़प से,
कि इस रूह की तड़प में कैसे मिटाऊ,

अंतरमन की पीड़ा को में कैसे सुलझाऊ,
कि इन बंदिशों से में खुदको कैसे छुड़ाऊ,

कि तभी मन ने कहा रूह से,
कि ना तड़प, कि ना छल्ली कर इस जिस्म को,

कि तेरी रौशनी से रोशन महताब हूँ में,
कि तेरी आज़ादी का फरमान हूँ में,

जो कर ले तू संकल्प आज़ादी का,
तो बंज़र ज़मी में खिला गुलाब हूँ में....

©purvarth #जिस्म
#रूह 
#मन