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ये इश्क का एहसास भी तेरा कैसा था ना दर्द था ना गम

ये इश्क का एहसास भी तेरा कैसा था
 ना दर्द था ना गमों की एक भी बौछार थी
 ये इश्क का एहसास भी तेरा कैसा था कुछ हलचल सी थी या कुछ सैलाब सा था
ये तेरी रुसवाई है यह दुनिया की बेवफाई है
मगर जो भी है इसमें इश्क की बेपनाह सैलाब आई है
मुझे अपने हर दर्द का हमदर्द बना लो
 दिल में नहीं तो ख्यालों में बैठा लो 
एक आईना में सुबह शाम देखती हूं 
जिसमें तुम्हें मैं अपने साथ देखती हूं
उन दरवाजों से भी अब ऐतराज है मुझे
उन खिड़कियों से बस वो चांद देखता हूं
दिन में ना जाने कितनी बार तुम्हें याद करती हूं तुमसे ज्यादा अब मैं तुम्हें प्यार करती हूं
करो मुझसे इतनी मोहब्बत ,
अपनी हर एक चाहत का अंजाम बना लो
ढक लो मुझे अपनी बाहों में इस तरह 
कि मुझे अपना संसार बना लो
कर लो मुझसे इश्क इस तरह
 कि अपनी इस दुनिया को भुलाकर मेरी दुनिया में समा जाओ
यह इश्क कभी तेरा क्या एहसास है दूर होकर भी ना जाने मेरे कितने पास है

©Shubhanshi Shukla
  #danmicshubhu