भ्रष्टाचारी क्या भ्रष्टाचार मिटाएगा जो खुद खाया उसने वही खिलाएगा लार टपकती रही उसकी नोट देखकर मन नहीं भरा मौत का खेल खेलकर चंद रुपयों की खातिर ज़मीर को बेच डाला कितने मासूमों के अरमानों को रौंद डाला दिमाग में है इनके रिश्वत का जाला ईमान पर लगा दिया नोटों का ताला बेगुनाह भी गुनहगार अब बने करनी इनकी, सजा वो सहें कुर्सी के लिए ही जंग है जिसे देखकर सब दंग हैं जब बीती खुद के अरमानों पर कराह भी न आ सकी अधरों पर अटल है अपनी शान पर भ्रष्टाचार की कीमत लगी जान पर अब अफसोस बहुत मनाता है भ्रष्टाचार को मिटाना चाहता है पर शायद वो भूल गया है कुछ सोच कर रुक गया है जिस रथ पर वो सवार है वो रथ उसके लिए पहाड़ है समझ आया अब जिन्दगी का खेल जिसमें हो गया वो अब फेल .................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #भ्रष्टाचारी #nojotohindi भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचारी क्या भ्रष्टाचार मिटाएगा जो खुद खाया उसने वही खिलाएगा लार टपकती रही उसकी नोट देखकर मन नहीं भरा मौत का खेल खेलकर