क्यूं गुमशुम खड़े हो अंधेरे में, जरा चेहरा अपना रोशनी में लाओ। क्या तुम अभी भी बंधे हो बेड़ियों से!, जरा चिराग दिल में फिर से तो भड़काओ।। बैठे बिठाए यूं कुछ नहीं होने वाला, कोशिश के आगे ना कोई टिकने वाला। है अगर हिम्मते जिगर में, जरा अपना हुनर दुनिया को तो दिखलाओ.।। फड़फड़ा के मछली जब बाहर आयेगी, आईना ए समंदर तो दिखलाएगी। भड़क उठेगी ज्वाला फिर से, जरा तुम लौ तो जलाओ।। हम क्या ,हमारा क्या?, इसमें खोई दुनिया सारी है,, मेरा ही हो हर कुछ, ये नई उलझन इक बीमारी है। उठो _उठो हे!मेरे शेर उठो, ना भागो तुम कौम के पीछे,, जगेगी इंसानियत इक दिन, जरा तुम प्यार का बिगुल तो बजाओ।।।। written by (संतोष वर्मा) आजमगढ़ वाले खुद की ज़ुबानी.... ©Santosh Verma जरा......