अदब से आई थी वो मेरी ज़िंदगी में हुई आग़ाज़े गुफ्तगू बहुत सादगी में| आज़ाद ख़याल है वो परिन्दों की तरह मुझको लगा था उसकी परवाज़गी में| सिल्सिला-ए-गुफ्तगू जब बढ़ा रफ़ता-रफ़ता तक़ब्बुर दिख रहा था लहजा-ए-तल्ख़ी में|