आशचर्य होता है ये देख कर ज़ब ईश्वर की प्रतिमा धूल में भी बन जाती है ज़ब चाँद किसी की ज़ेबा में पड़ा मिलता है ज़ब मछली सागर से उछल कर किसी पेड़ पर जा बैठती है जब उसी पेड़ पर रेंगती हुई गिलहरी सूरज को चबा जाती है या ज़ब एक नाविक अपनी किश्ती की पतवार तूफानों की ओर घुमा देता है ..... जहाँ लहरों का उफनता यौवन ज्वार भाटो को ललचाता है ©Parasram Arora काल्पनिक आश्चर्य.....