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उसको लगता है मैं बदल जाऊंगा मुझे डर है कि मैं बदल

उसको लगता है मैं बदल जाऊंगा
मुझे डर है कि मैं बदल न जाऊं
वो हर हर दिन कोशिशें करती है
मैं हर पल बच के निकल जाता हूं
उसे लगता होगा कि वो सही है
मुझे पता है कि मैं क्या हूं
उसकी नजर में मैं नकारा हूं
पता है मुझे की सच क्या है
हर बार जलील होकर चुप जाता
वो इसे अपनी जीत समझ लेता है
लेकिन शायद ऐसा ही चलता रहा
तो वो रोज जीतेगी और मैं मरता जाऊंगा
वो जश्न मनाएगी और मैं घुटता जाऊंगा
और एक दिन जीत जाएगी
और मैं जिंदगी हार जाऊंगा
और तब उसे लगेगा भी की नही पता
की हारा वो नही जीताया गया है
क्योंकि अब भी वो गैरो को 
कहानियां अच्छाई की
मेरी ही सुनाती है
लेकिन वो गजब की हरजाई है
घर अंदर जब भी वक्त मिलता
हमे ही रुलाती है

©ranjit Kumar rathour
  हरजाई 
#poetry month

हरजाई poetry month #कविता

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