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मिली थी मुझे जिंदगी कुछ लम्हों के लिए सही पर न जान

मिली थी मुझे जिंदगी कुछ लम्हों के लिए सही पर न जाने क्या गलती हुई मुझसे की रूठा वक्त मेरा मुझसे ही, के जिंदगी अब कुछ है अधुरी सी, है शायद वक्त से जैसे कोई नाराज़गी दिल में कही, है तो जिंदगी से भी कई शिकायते, पर है अनसुनी सी रहती बातें मेरी, मैं भला किस से साँझा करू अपने वक्त की बाते की राहे अभी है बीन जिंदगी से खाली-खाली सी, किस्से भी है, सिर्फ अकेले रह जाने के अब यह मैं किसे कहुँ, की खुद से अब दूरी है अब दुरी मेरी बढ़ रही कही न कहीं मेरे मन की मेरे सपनों से, मेरी हक्कितों से और मेरे ज्ज़बातों से ही

©SAHIL KUMAR
  खोई हुई ज़िंदगी
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SAHIL KUMAR

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खोई हुई ज़िंदगी #कविता

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