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लोगों ने पर्दे तो बहुत लगाए अपनी आंखों की डगर, कि

लोगों ने पर्दे तो बहुत लगाए
अपनी आंखों की डगर,
कि बेपर्दा न हो जाए कहीं शरम उनकी,
मगर वो भूल गए कि पारखी दिलों के,
उतरते हैं नज़रों से दिलों में सीधा,
लगाए भी तो पर्दे शर्म ढकने को क्या फिर?
मगर वह शर्म भी पर्दे में कहाँ रुकी उनकी।

© Samrat Verma शर्म | Sharm
 - सम्राट वर्मा
www.facebook.com/AapkaSamrat
लोगों ने पर्दे तो बहुत लगाए
अपनी आंखों की डगर,
कि बेपर्दा न हो जाए कहीं शरम उनकी,
मगर वो भूल गए कि पारखी दिलों के,
उतरते हैं नज़रों से दिलों में सीधा,
लगाए भी तो पर्दे शर्म ढकने को क्या फिर?
मगर वह शर्म भी पर्दे में कहाँ रुकी उनकी।

© Samrat Verma शर्म | Sharm
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Samrat Verma

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