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" कहीं मैं और तुम कुछ करीब तो नहीं आ रहे , जन्द सा

" कहीं मैं और तुम कुछ करीब तो नहीं आ रहे ,
जन्द सांसों का सैलाब है हम कही बहक तो नहीं रहे ,
जाहिर कर तु आरज़ू की तमन्ना मैं भी कुछ पुरी करु ,
सिलवटों पे पड़ने दें कुछ निशान यही चाहत की पहचान होगी ,
तजूरबा तु भी कर मुझे भी कुछ ये इल्म होने दें ,
ख्याल अब जो भी हो कुछ तो पहचान बन ने दे. " 

                             --- रबिन्द्र राम

                                 
 कहीं मैं और तुम कुछ करीब तो नहीं आ रहे ,
जन्द सांसों का सैलाब है हम कही बहक तो नहीं रहे ,
जाहिर कर तु आरज़ू की तमन्ना मैं भी कुछ पुरी करु ,
सिलवटों पे पड़ने दें कुछ निशान यही चाहत की पहचान होगी ,
तजूरबा तु भी कर मुझे भी कुछ ये इल्म होने दें ,
ख्याल अब जो भी हो कुछ तो पहचान बन ने दे. " 

                             --- रबिन्द्र राम
" कहीं मैं और तुम कुछ करीब तो नहीं आ रहे ,
जन्द सांसों का सैलाब है हम कही बहक तो नहीं रहे ,
जाहिर कर तु आरज़ू की तमन्ना मैं भी कुछ पुरी करु ,
सिलवटों पे पड़ने दें कुछ निशान यही चाहत की पहचान होगी ,
तजूरबा तु भी कर मुझे भी कुछ ये इल्म होने दें ,
ख्याल अब जो भी हो कुछ तो पहचान बन ने दे. " 

                             --- रबिन्द्र राम

                                 
 कहीं मैं और तुम कुछ करीब तो नहीं आ रहे ,
जन्द सांसों का सैलाब है हम कही बहक तो नहीं रहे ,
जाहिर कर तु आरज़ू की तमन्ना मैं भी कुछ पुरी करु ,
सिलवटों पे पड़ने दें कुछ निशान यही चाहत की पहचान होगी ,
तजूरबा तु भी कर मुझे भी कुछ ये इल्म होने दें ,
ख्याल अब जो भी हो कुछ तो पहचान बन ने दे. " 

                             --- रबिन्द्र राम