हम मिल गए हैं ना,फिर क्यूँ शिकन की लकीरें, माथे पर आज भी उभरीं हैं, क्यूँ वो अनजाने की गलतियों से, पैदा हुई दूरियां आज तक मिट न सकीं, मगर मैं जो तुम्हारे ज़िस्म के करीब हूँ , हूँ या न हूँ रूह के भी यूँ तो, ये की लहरें मिटा तो देती हैं,रेत से कदमों के निशान भी, तो क्यूँ न तुम मुझ पर , ऐसे बरसो की बस भिगो कर अंदर तक, चलो इन्द्रधनुषी रंग हम हो लेते हैं , धूप और बरसती बूंदों को एक डोर में पिरो ही देते हैं ,आओ गले लग फिर से, हम समझौता कर ही लेते है, होने को तुम्हारा ,सिर्फ तुम्हारा। बात इतनी क्या बढ़ाएं आओ ना समझौता कर लेते हैं। दो लोगों के आपसी मतभेद ज़रा सी बातचीत से हल हो सकते हैं। समझौता करना हमेशा बुरा नहीं होता। Collab करें YQ Didi के साथ।