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suparasjain9052
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Suparas Jain

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bc365972feba56254a14c221746f4f04

Suparas Jain

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है?
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।
पानी की बूँद का सागर में गिरना,
और फिर सागर हो जाना।

जब मैं पहाड़ों में होता हूँ,
पहाड़ों सा हो जाता हूँ।
जब नदियों में उतरता हूँ,
नदियों संग बह जाता हूँ ।

सागर के किनारे बैठ,
जब लहरों का संगीत सुनता हूँ,
जाने कहाँ गहराईयों में खो जाता हूँ।
जाने कब रेत पर बैठे-बैठे ही,
सीपियों से मोती मांग लाता हूँ ।

शहरों में मगर कुछ अलग सा हो जाता हूँ,
जब भीड़ के दरमियां गुजरता हूँ,
भीड़ तो हो जाता हूँ।
पर न जाने क्यूँ,
शोर में खामोशी
और खामोशी में खुद के भीतर ही,
एक बेचैन शोर को तलाशता हूँ ।

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है,
मिट्टी से हमारा मनुष्य बनना,
और फिर मिट्टी हो जाना।
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।




:सजल

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Suparas Jain

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है?
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।
पानी की बूँद का सागर में गिरना,
और फिर सागर हो जाना।

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है,
मिट्टी से हमारा मनुष्य बनना,
और फिर मिट्टी हो जाना।
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।

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Suparas Jain

मगर हकीकत इससे परे सिर्फ इतनी सी है कि यही सब चिंतन मनन करते हुए मेरी अवस्थाएँ परिवर्तित होती चली जाएंगी और यह विचार जिस मिट्टी से जन्मा था एक दिन उसी मिट्टी में विलय हो जाएगा और न जाने कितने ही मनुष्य भव इसी तरह भोग विलासिता को ही सुख मान कर मैनें व्यर्थ कर दिये हैं और न जाने कितने ही आने वाले मनुष्य भवों को मैं आत्मज्ञान के अभाव में व्यर्थ कर दूँगा परन्तु यह विचार मात्र ही पर्याप्त है कि मैं अपने चैतन्य स्वरूप को पहचानूं और स्वयं को खोजने के मार्ग पर चल पडूँ ताकि मेरा यह अनंत पुण्य फलों के प्रभाव से मिलने वाला यह मनुष्य भव में जन्म लेना सार्थक बन सके।

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Suparas Jain

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है?
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।
पानी की बूँद का सागर में गिरना,
और फिर सागर हो जाना।

जब मैं पहाड़ों में होता हूँ,
पहाड़ों सा हो जाता हूँ।
जब नदियों में उतरता हूँ,
नदियों संग बह जाता हूँ ।

सागर के किनारे बैठ,
जब लहरों का संगीत सुनता हूँ,
जाने कहाँ गहराईयों में खो जाता हूँ।
जाने कब रेत पर बैठे-बैठे ही,
सीपियों से मोती मांग लाता हूँ ।

शहरों में मगर कुछ अलग सा हो जाता हूँ,
जब भीड़ के दरमियां गुजरता हूँ,
भीड़ तो हो जाता हूँ।
पर न जाने क्यूँ,
शोर में खामोशी
और खामोशी में खुद के भीतर ही,
एक बेचैन शोर को तलाशता हूँ ।

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है,
मिट्टी से हमारा मनुष्य बनना,
और फिर मिट्टी हो जाना।
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।

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Suparas Jain

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है?
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।
पानी की बूँद का सागर में गिरना,
और फिर सागर हो जाना।

जब मैं पहाड़ों में होता हूँ,
पहाड़ों सा हो जाता हूँ।
जब नदियों में उतरता हूँ,
नदियों संग बह जाता हूँ ।

सागर के किनारे बैठ,
जब लहरों का संगीत सुनता हूँ,
जाने कहाँ गहराईयों में खो जाता हूँ।
जाने कब रेत पर बैठे-बैठे ही,
सीपियों से मोती मांग लाता हूँ ।

शहरों में मगर कुछ अलग सा हो जाता हूँ,
जब भीड़ के दरमियां गुजरता हूँ,
भीड़ तो हो जाता हूँ।
पर न जाने क्यूँ,
शोर में खामोशी
और खामोशी में खुद के भीतर ही,
एक बेचैन शोर को तलाशता हूँ ।

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है,
मिट्टी से हमारा मनुष्य बनना,
और फिर मिट्टी हो जाना।
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।

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Suparas Jain

मगर हकीकत इन सबसे परे सिर्फ़ यही है कि यही सब चिंतन मनन करते हुए मेरी अवस्थाएँ परिवर्तित होती चली जाएंगी और यह विचार जिस मिट्टी से जन्मा था एक दिन उसी मिट्टी में विलय हो जाएगा और न जाने कितने ही मनुष्य भव इसी तरह भोग विलासिता को ही सुख मान कर मैनें व्यर्थ कर दिये हैं और न जाने कितने ही आने वाले मनुष्य भवों को मैं आत्मज्ञान के अभाव में व्यर्थ कर दूँगा परन्तु यह विचार मात्र ही पर्याप्त है कि मैं अपने चैतन्य स्वरूप को पहचानूं और स्वयं को खोजने के मार्ग पर चल पडूँ ताकि मेरा यह अनंत पुण्य फलों के प्रभाव से मिलने वाला यह मनुष्य भव में जन्म लेना सार्थक बन सके।

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Suparas Jain

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है?
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।
पानी की बूँद का सागर में गिरना,
और फिर सागर हो जाना।

जब मैं पहाड़ों में होता हूँ,
पहाड़ों सा हो जाता हूँ।
जब नदियों में उतरता हूँ,
नदियों संग बह जाता हूँ ।

सागर के किनारे बैठ,
जब लहरों का संगीत सुनता हूँ,
जाने कहाँ गहराईयों में खो जाता हूँ।
जाने कब रेत पर बैठे-बैठे ही,
सीपियों से मोती मांग लाता हूँ ।

शहरों में मगर कुछ अलग सा हो जाता हूँ,
जब भीड़ के दरमियां गुजरता हूँ,
भीड़ तो हो जाता हूँ।
पर न जाने क्यूँ,
शोर में खामोशी,
और खामोशी में खुद के भीतर ही,
एक बेचैन शोर को तलाशता हूँ ।

यह सब इतना क्षणिक क्यूँ होता है,
मिट्टी से हमारा मनुष्य बनना,
और फिर मिट्टी हो जाना।
वैराग्य के भाव आना,
और फिर संसार में रम जाना।

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bc365972feba56254a14c221746f4f04

Suparas Jain

I was hanging to the dot of a question mark,
Of a never ending question,
"Is life really hard?"
I closed my eyes, 
Enough hard not to see anything, 
But darkness all around.
In my self made restrictions, 
I was bound.

I felt a soft jerk,
A gentle pull, 
By someone with small hands. 
I wake up and looked back and found, 
My childhood was trying hard,
To pull me back,
From so called adulthood and maturity 
Which I adopted unwillingly, 
But conditionally.

I released the dot as I realized, 
The very famous lines by Shakespeare, 
"All the world's a stage,
And all the men and women merely players;"
Finally I decided my character, 
To live it the way children do,
As I liked it,
Independent and joyfully,
Who talks to stars, moon and clouds, 
Plays with trees, grass and air,
Fly with birds singing Hakuna Matata, 
This is how happiness keeps him busy, 
Wow! life's so easy. I was hanging to the dot of a question mark,
Of a never ending question,
"Is life really hard?"
I closed my eyes, 
Enough hard not to see anything, 
But darkness all around.
In my self made restrictions, 
I was bound.

I was hanging to the dot of a question mark, Of a never ending question, "Is life really hard?" I closed my eyes, Enough hard not to see anything, But darkness all around. In my self made restrictions, I was bound. #Childhood #yqbaba #yqpoetry #sajalsays

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bc365972feba56254a14c221746f4f04

Suparas Jain

Our sufferings
are equivalent to our desires.
And so,
When I was six,
I usually sold all my sufferings,
For a rupee coin.  ...but now neither I'm six nor I can buy happiness for a coin.

#desires #greed #aging #yqbaba

...but now neither I'm six nor I can buy happiness for a coin. #desires #greed #Aging #yqbaba

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bc365972feba56254a14c221746f4f04

Suparas Jain

She checks on her brotha's profile,
Each time she opens YQ,
She stays there for a while. 
After finding nothing new,
She, quietly goes back, 
But this time, 
you'll find a piece.
In hope of a smile on your face.
And yeah! Don't worry kiddo,
Your brotha is all fine,
And he's back. Yeah kiddo Ayushi Vatsya Singh , this time you'll find this piece on visiting my profile. ❤
Yours 
Brotha

Yeah kiddo Ayushi Vatsya Singh , this time you'll find this piece on visiting my profile. ❤ Yours Brotha

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