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तुम नारायणी।। किस कर रोकूँ अपने आंसू मैं, किस दर

तुम नारायणी।।

किस कर रोकूँ अपने आंसू मैं,
किस दर जा दुख अपने बांटूं मैं।

तू सरल कोई थी प्राणी नहीं,
प्रखर तुम सी कोई वाणी नहीं।

स्वीकार करो ये श्रद्धासुमन,
ले कंधे चली तू सारा वतन।

जग सारा वैभव का साक्षी है,
तेरे पुनर्जन्म का अभिलाषी है।

है धरा शिथिल ये गगन है रोता,
हर युग कब ये अवतार है होता।

तू आज गयी सब छोड़-छाड़ कर,
जग में भारत का ध्वज गाड़ कर।

ऋणी तुम्हारा हर युग ये देश रहेगा,
जबतक अवधि-समय ये शेष रहेगा।

रजनीश "स्वच्छंद" ईश्वर पुण्यात्मा को शांति प्रदत करे।।ॐ शांति।।शांति ॐ।।

तुम नारायणी।।

किस कर रोकूँ अपने आंसू मैं,
किस दर जा दुख अपने बांटूं मैं।

तू सरल कोई थी प्राणी नहीं,
तुम नारायणी।।

किस कर रोकूँ अपने आंसू मैं,
किस दर जा दुख अपने बांटूं मैं।

तू सरल कोई थी प्राणी नहीं,
प्रखर तुम सी कोई वाणी नहीं।

स्वीकार करो ये श्रद्धासुमन,
ले कंधे चली तू सारा वतन।

जग सारा वैभव का साक्षी है,
तेरे पुनर्जन्म का अभिलाषी है।

है धरा शिथिल ये गगन है रोता,
हर युग कब ये अवतार है होता।

तू आज गयी सब छोड़-छाड़ कर,
जग में भारत का ध्वज गाड़ कर।

ऋणी तुम्हारा हर युग ये देश रहेगा,
जबतक अवधि-समय ये शेष रहेगा।

रजनीश "स्वच्छंद" ईश्वर पुण्यात्मा को शांति प्रदत करे।।ॐ शांति।।शांति ॐ।।

तुम नारायणी।।

किस कर रोकूँ अपने आंसू मैं,
किस दर जा दुख अपने बांटूं मैं।

तू सरल कोई थी प्राणी नहीं,