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जिस दर्पण में खुद को संवारा, वो दर्पण ही टूट गया।

जिस दर्पण में खुद को संवारा,
वो दर्पण ही टूट गया।
हम तो जिये गैरो की खातिर,
हमसे जमाना रूठ गया।।

जिस मिट्टी से बना खिलौना,
पड़ा हुआ पाकर एक कोना,
अपनो ने ठोकर यूं मारी,
जग सारा ही छूट गया।।

झूठे नाते झूठे रिश्ते,
झूठे प्यार के सारे किस्से।
है ये फरेबी दुनियां वाले,
अपना बनाकर लूट लिया।।

कहना सुनना खत्म हुआ अब,
देह का चिंतन भस्म हुआ अब।
हाड़ मांस का टुकड़ा था जो,
अब संसार से विदा हुआ।।।।

Poonam Singh bhadauria

©meri_lekhni,_12
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