मैं खड़ी थी उस समुन्दर के पास जहाँ नहीं थी कोई भी आवाज़। उस उछलती हवा की ठंडक में मैं आँखें मीचे खड़ी थी ठिठुरन से मैं मूर्ती बन पड़ी थी। एक केकड़ा मुझे घूर रहा था मगर पास आया नहीं शायद इस अजीब-सी लड़की का अजीब-सा व्यवहार वह समझ पाया नहीं। मैंने उसे देखा तो जा छिपा वह रेत में मानो मैं इंसान नही, कोई भूत-प्रेत मैं! मैं हंसकर चल दी घर की ओर केकड़ा अपने सागर के रास्ते, मैं तो गयी अंधेरे के कारण वह अपने मानसिक संतुलन वास्ते। My first Hindi poem. And that too in the Humour genre! #ramona_humour #ramonasfavourites #r_hindi