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कुण्डलिया :- वंदन करता मातु को , जो अपनी जागीर ।

कुण्डलिया :-

वंदन करता मातु को , जो अपनी जागीर ।
जिनके पुन्य प्रताप से, देखो हुआ अमीर ।।
देखो हुआ अमीर , मातु के मैं कदमों से ।
जागा मेरा भाग्य , आज उनके कर्मो से ।।
उठा लिया जो धूल , समझकर मैने चंदन ।
करता उठकर नित्य , मातु को अपने वंदन ।।

१९/१०/२०२३       -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

कुण्डलिया :-


वंदन करता मातु को , जो अपनी जागीर ।

जिनके पुन्य प्रताप से, देखो हुआ अमीर ।।
कुण्डलिया :-

वंदन करता मातु को , जो अपनी जागीर ।
जिनके पुन्य प्रताप से, देखो हुआ अमीर ।।
देखो हुआ अमीर , मातु के मैं कदमों से ।
जागा मेरा भाग्य , आज उनके कर्मो से ।।
उठा लिया जो धूल , समझकर मैने चंदन ।
करता उठकर नित्य , मातु को अपने वंदन ।।

१९/१०/२०२३       -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

कुण्डलिया :-


वंदन करता मातु को , जो अपनी जागीर ।

जिनके पुन्य प्रताप से, देखो हुआ अमीर ।।

कुण्डलिया :- वंदन करता मातु को , जो अपनी जागीर । जिनके पुन्य प्रताप से, देखो हुआ अमीर ।। #कविता