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"अनुपम " रे ! तू मनुज है तो, मनुज से प्यार कर लेन


"अनुपम " रे ! तू मनुज है तो,
मनुज से प्यार कर लेना। 
दया करुणा ह्रदय में रख,
कभी उपकार कर लेना। 
जगत में प्रेम ही केवल, 
सुपथ है शांति का प्यारे।
छुपा जो स्वार्थ अंतस में, 
इसी से तेरे द्वंद हैं सारे।
उदासी बैर हिंसा का ,
 उचित उपचार  कर देना।
"अनुपम" रे ! तू मनुज है तो, 
 मनुज से प्यार कर लेना। 
बहे  जो आँख से आँसू , 
बताते  मर्म सच्चे हैं।    
बचाते प्राण  जो जानो,
 वही तो कर्म  अच्छे हैं ।
मनुज रे! तू भलाई की, 
सदा जयकार कर लेना। 
"अनुपम" रे ! तू मनुज है तो,
"अनुपम"मनुज से प्यार कर लेना

©"ANUPAM"
  #अनुपम_की_कविता