मछली जल के भीतर घर है मेरा मैं हूँ जल की रानी रिश्ता है गहरा पानी से मेरा जीवन पानी उछल कूद कितना भी कर लूँ पानी कभी न रोके कितना भी शैतानी कर लूँ कभी न मुझको टोके उससे अलग न रह सकती हूँ जान रहा जग सारा फिर भी मुझे रिझाती दुनिया मुझे दिखाकर चारा चारे के लालच में खुद ही बन जाती हूँ चारा फिर वो मुझे पकाकर कर खाती लेकर के चटकारा मैं हूँ सीधी सच्ची दुनिया इसका लाभ उठाती जाल फेंककर आसानी से उसमें मुझे फंसाती ईश्वर से कहती हूँ मेरी कैसे होगी रक्षा शत्रु मेरा बन जाता बेखुद जिसको समझूँ अच्छा ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #fish