माँ अब तो ये जवानी आयी, बचपन अपना छीन गयी। थोड़ी सी समझदारी देकर, अनमोल बचपना ले गयी। क्यूँ बड़ा किया हे माँ, क्यूँ छुड़ाया तुमने अपना आँचल । बड़ा न होता पर क्या जाता, संग तो था तेरे साथ का कल। तुम राजा बेटा मुझको कहती थी, बस याद वहीं तड़पाती है। दिन तो कट जाता हे माँ मेरी, पर ये रात निगोड़ी बहुत डराती है। तेरी छाती में था संसार हे माँ, वो संसार हीं बहुत याद अब आती है । फिर से वो नींद दे दे माँ, जो तेरे आँचल में आ जाती थी। ....2 (भाग-1 का शेष) @उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी माँ (भाग-2)