“आदमी बुलबुला है पानी का... और पानी की बहती सतह पर.... टूटता है.. डूबता है ... उभरता है... और फिर से बहता हता हैं..... ना समंदर निगल सका है इसको ना तवारीख तोड़ पाई है.... वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है... पानी का„ आदमी बुलबुला है.... पानी का.... Eisha Ishaan