ज़ब कब्र क़ेधरातल पर हरी घास का उगना हुआ लगा गुमशुदा जिंदगीका जैसे फिर से आना हुआ ज़ब भी मन हुआ कदमो क़े नक्शे बनाने का लगा मेरे सफऱ का अबजाकर समापन हुआ विषाद क़े विष बुझे तीर का ज़ब भी मेरी तरफ आना हुआ घायल हुआ ह्रदय और मेरा पीड़ा से साक्षत्कार हुआ जिस दिन उस बिलखाती सांझ क़े मंजर को. मैंने देखा लगा मेरे जीवनके स्वामी उस मृत्यु दूत का आना हुआ ©Parasram Arora मृत्युदूत......