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मैं समुंदर को किनारे पर ला सकती थी मैं किनारे पर स

मैं समुंदर को किनारे पर ला सकती थी
मैं किनारे पर समुंदर बना सकती थी
एक मुद्दत हुई इन आंखों को मूंदे
मैं आंखों से चश्मा हटा सकती थी

जो हवा भी मुझको हिलाती रही
उस हवा का पता मैं बता सकती थी
एक  राह मुझ तक आती फिर धोखा है खाती
मैं मृत्यु को जीना सिखा सकती थी

पर अफसोस  उसने... माफी थीं मांगी
जो एक दिन सबको बचा सकती थी
यह नफरत की आंधी घटती बढ़ती रही
मैं किनारा समुंदर बना सकती थी

©Gudiya Gupta (kavyatri).....
  #maafi