मुक्तक :- अम्बें तुम्हारे भक्त देखो सब झुकाएँ शीश जगदम्बें । तुम्हारे नित्य दर्शन से मिले आशीष जगदम्बें । भटक कर योनियाँ सारी बने इंसान यह सब हैं - इन्हें भी मुक्ति दे दो माँ तुम्हीं वागीश जगदम्बें ।। बुरे अब कर्म हो जिसके करो संहार जगदम्बें । भले हो जो यहाँ मानव करो उद्धार जगदम्बें । यही विनती करूँ मैं माँ तुम्हारे आज दर पर मैं - प्रखर भी है बुरा तो अब दियो दुत्कार जगदम्बें ।। १६/१०/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *🙏🌹सादर समीक्षार्थ🌹🙏* मुक्तक :- अम्बें तुम्हारे भक्त देखो सब झुकाएँ शीश जगदम्बें । तुम्हारे नित्य दर्शन से मिले आशीष जगदम्बें । भटक कर योनियाँ सारी बने इंसान यह सब हैं - इन्हें भी मुक्ति दे दो माँ तुम्हीं वागीश जगदम्बें ।।