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" जब भी मैं गुजरु तेरी गलियों से , यूं खिड़की पे आ

" जब भी मैं गुजरु तेरी गलियों से ,
यूं खिड़की पे आ‌ के हम देख के मुस्कुराया ना कर ,
जब‌ भी मैं तुझे देखना चाहु तुझे पिछे मुड़ के ,
यूं हंस के मुस्कुरा के पर्दा गिराया ना कर . " 
 
                         --- रबिन्द्र राम  Pic : pexels.com 

" जब भी मैं गुजरु तेरी गलियों से ,
यूं खिड़की पे आ‌ के हम देख के ,
मुस्कुराया ना कर ,
जब‌ भी मैं तुझे देखना चाहु तुझे पिछे मुड़ के ,
यूं हंस के मुस्कुराके पर्दा गिराया ना कर . "
" जब भी मैं गुजरु तेरी गलियों से ,
यूं खिड़की पे आ‌ के हम देख के मुस्कुराया ना कर ,
जब‌ भी मैं तुझे देखना चाहु तुझे पिछे मुड़ के ,
यूं हंस के मुस्कुरा के पर्दा गिराया ना कर . " 
 
                         --- रबिन्द्र राम  Pic : pexels.com 

" जब भी मैं गुजरु तेरी गलियों से ,
यूं खिड़की पे आ‌ के हम देख के ,
मुस्कुराया ना कर ,
जब‌ भी मैं तुझे देखना चाहु तुझे पिछे मुड़ के ,
यूं हंस के मुस्कुराके पर्दा गिराया ना कर . "

Pic : pexels.com " जब भी मैं गुजरु तेरी गलियों से , यूं खिड़की पे आ‌ के हम देख के , मुस्कुराया ना कर , जब‌ भी मैं तुझे देखना चाहु तुझे पिछे मुड़ के , यूं हंस के मुस्कुराके पर्दा गिराया ना कर . "