वज़ूद! कहने को तो सारा जहाँ, आशियां था मेरा। मगर मंजिल ने तोड़ लिए वो सारे तारे , जो मैं अपनी ही परछाईं को ढूंढ़ते हुए, चला आया था अकेला ही सुनसान राहों में , मगर सुबह होती गयी और सपने टूटते गए, #कविता अनुशीर्षक में वज़ूद कहने को तो सारा जहाँ,आशियाना था मेरा , मगर मंजिल ने तोड़ लिए वो सारे तारे जो मैं अपनी ही परछाईं को ढूंढ़ते हुए, चला आया था अकेला ही सुनसान राहों में , मगर सुबह होती गयी और सपने टूटते गए, फिर भी चलता रहा मैं इसी जद्दोजहद में