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हर एक बूंदो की परवाह किए, थामे रखा था मैं उसे। अपन

हर एक बूंदो की परवाह किए,
थामे रखा था मैं उसे।
अपना न सही,
अपना मान बैठा था मैं उसे।
हर दास्तान अधूरी रही मेरी,
हर वादों के भीड़ में।
बादल भी रो पड़े यह देख,
हर बूंद के रूप में।

©writer_Suraj Pandit
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