बात यह नहीं पुरानी पर बात है यह आज़ बहुत काम की,
ग़र समझ सको तो कह जाती है यह दास्ताँ एक औरत की।
कैसे शुरू हुई और कहां पर जाकर होगी ख़त्म़ यह नहीं मालूम,
पर कहना चाहता हूं मैं आज़ सबको यह बात सुनना तुम ज्ञान की।
कह नहीं सकती माँ तुम हमें पर तेरी बातों का एहसास होता है,
शायद़ तुम्हे नहीं पता माँ पर याद़ आती है जब तुम्हारी सहम से जाते है।
कैसे तुम्हें बताएं कि दूर होकर तुमसे हम तुम्हें कितना चाहते है, #महिला#महिलासशक्तिकरण#मातृदिवस#एहसास_मेरी_कलम_से#महिलादिवस#एहसास_तुम्हारे_होने_का#महिलाकीकहानी