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राहें उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः |

राहें उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि  न मनोरथैः  |
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे  मृगाः || - सुभषितरत्नाकर  

भावार्थ -    निरन्तर उद्यम करने से ही विभिन्न कार्य सम्पन्न 
(सिद्ध) होते हैं न कि मात्र मनोरथ (इच्छा) करने से | निश्चय  ही 
एक  सोये हुए सिंह  के मुख  में हिरण  स्वयं प्रविष्ट नहीं  होते  हैं | 
(एक सिंह को भी अपनी भूख मिटाने के लिये प्रयत्न पूर्वक हिरणों 
का पीछा कर उनका  वध करना पडता है | निष्क्रिय व्यक्तियों की 
की तुलना एक सोये हुए सिंह से कर  इस सुभाषित में उद्यमिता  के  
महत्व को प्रतिपादित किया गया  है ।.
Udyamena = by continuous and strenuous efforts,  
Hi= surely.    
Sidhyanti =  are accomplished.      
 Kaaryaani = various tasks    
Na = not.    
 Manorathaih= by simply desiring.   
 Nahi = by no
means.     
  Suptasya = sleeping.                 
Simhasya = a loin's 
Pravishanti = enter,    
Mukhe =  mouth.  
Mrugaah = antelopes.
i.e.               We can accomplish var प्रयत्न का महत्व
राहें उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि  न मनोरथैः  |
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे  मृगाः || - सुभषितरत्नाकर  

भावार्थ -    निरन्तर उद्यम करने से ही विभिन्न कार्य सम्पन्न 
(सिद्ध) होते हैं न कि मात्र मनोरथ (इच्छा) करने से | निश्चय  ही 
एक  सोये हुए सिंह  के मुख  में हिरण  स्वयं प्रविष्ट नहीं  होते  हैं | 
(एक सिंह को भी अपनी भूख मिटाने के लिये प्रयत्न पूर्वक हिरणों 
का पीछा कर उनका  वध करना पडता है | निष्क्रिय व्यक्तियों की 
की तुलना एक सोये हुए सिंह से कर  इस सुभाषित में उद्यमिता  के  
महत्व को प्रतिपादित किया गया  है ।.
Udyamena = by continuous and strenuous efforts,  
Hi= surely.    
Sidhyanti =  are accomplished.      
 Kaaryaani = various tasks    
Na = not.    
 Manorathaih= by simply desiring.   
 Nahi = by no
means.     
  Suptasya = sleeping.                 
Simhasya = a loin's 
Pravishanti = enter,    
Mukhe =  mouth.  
Mrugaah = antelopes.
i.e.               We can accomplish var प्रयत्न का महत्व

प्रयत्न का महत्व #कविता