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पंख होते थे लेखनी, भावना में उड़ जाते थे, पांव होत

पंख होते थे लेखनी, भावना में उड़ जाते थे,
पांव होते थे जमीं पे,
हाथों में होती थी यूं कलम,
बहके कविताई की धारा -
खोते थे चेतना न,
मोती लेते थे खोज फिर,
 ज्ञान के रत्न का भंडार -
डाल रख देते थे भोजपत्र,
भौतिकवादी न था युग,
लालसा थी न ज्यों लालच,
लाल थे लेखनी वाले खास।

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  #पंख वाली लेखनी #भोजपत्र