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अखबारों में पढ़ा था,देश अब पहले वाला नही रहा। इश्त

अखबारों में पढ़ा था,देश अब पहले वाला नही रहा।
इश्तहारों में भी मढ़ा था,विकास हर छेत्र में हो रहा।
न्यूज चैनल वालों ने,विकास का स्वरूप बताया था।
गरीब अब कोई रहा नही,चित्र कुछ ऐसा बनाया था।
सुना था मुल्क का,विदेशों में अब सम्मान बढ़ा है।
सेना का भी बहुत,गौरव और अभिमान बढ़ा है।
सुना था ये भी हमने,अर्थव्यवथा में हुआ सुधार है।
मुल्क पर हमारे,नहीं किसी का अब उधार है।
सुना था ये भी ,की रोजगार खूब मिल रहा।
दिल युवाओं का भी,अब खुशी से खिल रहा।
फिर ये कौन लोग हैं जो,बेवजह सड़कों पर घूम रहे।
ये कहां से आए हैं जो,धूल सड़कों की चूम रहे।
सिग्नल पर भीख मांगते,ये बच्चे कहां से आ जाते हैं।
देश की सुंदरता पर,बट्टा आखिर क्यों ये लगाते हैं।
क्यों किसान हमारे,सड़कों पर डेरा डाल पड़े है।
जब इतना विकास हुआ तो,बेवजह किस बात पर अड़े हैं।
क्यों आत्महत्या लोग कर रहे,क्यों भूख से बच्चे मर रहे।
क्यों बेरोजगारी का आलम है,क्यों युवाओं के चहरे पर मातम है।
क्यों हमारे सैनिकों के,शीश काट दुश्मन ले जाता है।
कभी पठानकोट कभी पुलवामा,के जरिए दहशत अब भी फैलता है।
क्यों सरकारी संपत्ति,को बेचने की इतनी जल्दबाजी है।
क्यों निजीकरण के लिए,हो रही इतनी आतिशबाजी है।
ये कैसे विकास है,जो रोजगार की दर कम कर रह।
ये कैसे तरक्की है,की महंगाई का दर रोज़ बढ़ रहा।
ये कैसी खुशहाली है,की कोई खुश अब लगता नहीं।
ये कैसा विकास है,की जीवन में हमारे दिखता नहीं।

©purvarth #ये कैसा विकास है
अखबारों में पढ़ा था,देश अब पहले वाला नही रहा।
इश्तहारों में भी मढ़ा था,विकास हर छेत्र में हो रहा।
न्यूज चैनल वालों ने,विकास का स्वरूप बताया था।
गरीब अब कोई रहा नही,चित्र कुछ ऐसा बनाया था।
सुना था मुल्क का,विदेशों में अब सम्मान बढ़ा है।
सेना का भी बहुत,गौरव और अभिमान बढ़ा है।
सुना था ये भी हमने,अर्थव्यवथा में हुआ सुधार है।
मुल्क पर हमारे,नहीं किसी का अब उधार है।
सुना था ये भी ,की रोजगार खूब मिल रहा।
दिल युवाओं का भी,अब खुशी से खिल रहा।
फिर ये कौन लोग हैं जो,बेवजह सड़कों पर घूम रहे।
ये कहां से आए हैं जो,धूल सड़कों की चूम रहे।
सिग्नल पर भीख मांगते,ये बच्चे कहां से आ जाते हैं।
देश की सुंदरता पर,बट्टा आखिर क्यों ये लगाते हैं।
क्यों किसान हमारे,सड़कों पर डेरा डाल पड़े है।
जब इतना विकास हुआ तो,बेवजह किस बात पर अड़े हैं।
क्यों आत्महत्या लोग कर रहे,क्यों भूख से बच्चे मर रहे।
क्यों बेरोजगारी का आलम है,क्यों युवाओं के चहरे पर मातम है।
क्यों हमारे सैनिकों के,शीश काट दुश्मन ले जाता है।
कभी पठानकोट कभी पुलवामा,के जरिए दहशत अब भी फैलता है।
क्यों सरकारी संपत्ति,को बेचने की इतनी जल्दबाजी है।
क्यों निजीकरण के लिए,हो रही इतनी आतिशबाजी है।
ये कैसे विकास है,जो रोजगार की दर कम कर रह।
ये कैसे तरक्की है,की महंगाई का दर रोज़ बढ़ रहा।
ये कैसी खुशहाली है,की कोई खुश अब लगता नहीं।
ये कैसा विकास है,की जीवन में हमारे दिखता नहीं।

©purvarth #ये कैसा विकास है