प्रिय तुम्हारी मोहिनी सूरत कुरूप जब हो जाती है सच कहता हूँ मेरी संगिनि श्वास मेरी थम जाती है जब संस्कार भी खोकर तुम मुझको अपमानित करती है मुझको तुमपर गर्व जो था वो द्युति तेरी खो जाती है मेरी वफाएं विनय मेरा और प्रेम भी रोने लगता है तुम अंधकार में डूबके जब बहारों से खफा हो जाती है हृदय धड़कता है रुक रुककर रूह यह रोने लगती है दशा तुम्हारी देखके जानम मेरी आँखें नम हो जाती है फिकर में तेरी डूबके जब रातों को नींद न आती है तब तेरी भलाई सोचने में माथे की नस दुख जाती है मैं दिल की हर दौलत को जाँ शब्दों में बयां कर देता हूँ जब तुम ही नहीं पढ़ पाती हो तो सुर-ताल यूँ ही रुक जाती है प्रिय तुम्हारी मोहिनी सूरत